Monday, April 6, 2009

सती


सती होना कोई प्रथा नही रही है । जिन नारियों ने अपने पति को कभी दिल से नही चाह उन्हीं को सती बनाया गया । क्या , किसी को इतना चाह जा सकता है की उसके मरने पर स्वयम भी जिन्दा जल जाए । स्त्रियाँ ही उसे जीवन की भायानाक्ताओं से भयभीत कर देतीं हैं । पूरा खेल धन -संपत्ति पर आकर ठहर जाता है ।

कुंठित नारी ही ऐसा कर जाती है । हमारा समाज समझ ही नही पाया कि कोई भी स्त्री पति के जीते जी ही सती होती है । अपने संस्कार , भाव , विचार और सम्मान से , लेकिन स्त्री को सती के रूप मैं बलि चढाने वाले कब समझ पाए कि सती करवाना हत्या ही है । पति पत्नी के प्रेम की पराकाष्ठा सामाजिक स्तर पर ही ज्ञात हो जाती है । सतीत्व तो वहीं से जन्म लेता है । इस महान भाव का अनुभव करने वाली नारी मानवीय न रहकर देवी हो जाती है ।

शैलेन्द्र शर्मा ....

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