Friday, July 25, 2014

लूट का प्रयास विफल हुआ

२७ ,१० , २००३ को करीब ४ बजे गोबर्धन से गुरु जी के दर्शन कर वापस आई और २८ तारिख को मालवा एक्सप्रेस में अपनी बर्थ पर सामान रखा , बैग में मिठाई के डिब्बे थे , उसके ऊपर अपना दुपट्टा डाल दिया ,उस पर तकिया बनाकर लेट गई , दो दिन से घूम ही रही थी तो नींद भी जल्दी आ गई , तभी धौलपुर मुरैना के बीच सामने वाली सीट पर बैठे सज्जन जिन्हें झाँसी जाना था ,चिल्लाये - चोर चोर !! बैग खींच रहा है। उन्होंने मेरे ऊपर वाली बर्थ पर लेटे लड़के को पकड़कर मारना शुरू कर दिया , तभी , मेरी आँख खुल गई थोड़ी देर बाद समझ आया कि वो , व्यक्ति मेरा ही बैग खींच रहा था।

मेरे साथ पहली बार ऐसा हुआ था इसलिए आश्चर्य हुआ , ऐसा कैसे हो सकता है ? अपना सामान देखा सब सुरक्षित था , थोड़ी देर में दो चार लोग और आवाज करने लगे अरे !! हमारा पर्स नहीं मिल रहा , बुजुर्ग का साथ देने के लिए चार लोग और जुड़ गए , उन्होंने पकडे व्यक्ति को दण्डित करने के लिए मारना शुरू कर दिया ,गाड़ी धीमी हुई और लड़का भाग गया , लोग नीचे उतरे लेकिन तभी ट्रेन चल दी , सब लोग वापस आ गए ,तभी एक लड़का ऊपर आया और बुजुर्ग को ईंट मारकर भाग गया , गनीमत थी कि ईंट सीधी उन्हें नहीं लगी लेकिन वे घबरा गए , उसकी इतनी हिम्मत कि वापस आकर मरने की कोशिश भी कर रहा है।

सिक्योरटी मैन को बुलाया गया , तमाम शिकायतों के बाद जी , अार , पी , गन मैन हमारे पास बैठा रहा , हम सकुशल घर आ गए , गुरु देव की कृपा हमारे साथ सहायक रही होगी।  लुटेरा अकेला तो नहीं था , उसके साथ और भी बन्दे होंगे क्योंकि उसे उतरने के लिए ट्रेन को रुकवाया गया था , कुसाहस का काम है। रेलवे को यात्रियों की सुरक्षा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

रेनू शर्मा 

Friday, July 11, 2014

एक नंबरी

महाग्रंथ के पन्नों में
छपे -लिखे ,
अज्ञान मिटाते
स्याह हर्फ़ ,
रहस्यों का पटाक्षेप करते
शब्दार्थों का जाल ;
कथा -संसार का
रोमांच दिखाते
वाक्यों के लच्छे ,
इतिहास के स्मृत
जीवित ,मृत ऋषि -मुनि
राजा -रंक ,नर -पिशाच
शिव ,राम और कृष्ण
सबके होने को
प्रमाणित करते
निशब्द -शब्द सोये
मस्तिष्क की ऊर्जा जैसे
छुपे रहते हैं , हम ,
निरक्षर अज्ञानी से
बंद किताब सा
मस्तिष्क ढोते रहते हैं।
अक्षर ज्ञान ,
किताब खोलने की चाबी है ,
उसी तरह ,
श्रेष्ठ  गुरु ज्ञान ,
मस्तिष्क की अज्ञानता को
जाग्रत करने की कुंजी है।
तभी , मानव शरीर रूपी
पंच दरवारी महल
एक नंबरी बनता है।

रेनू शर्मा 

Thursday, July 1, 2010

श्री मदभगवदगीता , एक योगिक व्याख्या

श्री मदभगवदगीता एक सम्पूर्ण आध्यात्मिक ,सामाजिक ,आर्थिक और मानवीय ग्रन्थ है |श्री गीता को योगिक दृष्टि से समझाने के लिए अभिनव प्रयास किया जा रहा है , क्रिया योग के महा गुरु श्री शैलेन्द्र शर्मा जी द्वारा व्याख्या की गई योगेश्वरी श्री मदभगवदगीता , एक योगिक व्याख्या , के मुख्य अंश पत्रिका मैं प्रस्तुत किये जा रहे हैं -
अथ प्रथमोअध्याय -
धृतराष्ट्र उवाच -
धर्मक्षेत्रे  कुरुक्षेत्रे  समवेता युयुत्सव :  |
मामका : पांडवाश्चैव किमकुरवत संजय  ||   
 धृतराष्ट्र बोले -  हे संजय !! धर्म भूमि कुरुक्षेत्र  मैं एकत्र हुए , युध्य की इच्छा वाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया ?
संजय ने अपने दिव्य नेत्रों से दृश्यमान रणभूमि के हर पल को धृतराष्ट्र  को विवरण देना आरम्भ कर दिया |
पांडवों और कौरवों की रणनीति , युध्य मैं उपस्तिथ योद्धाओं की जानकारी , उनके अश्त्र -शस्त्र की संख्या , सेना की व्यवस्था आदि देना शुरू कर दिया |
अपर्याप्तं तदस्माकं बलं भीष्माभिरक्षितम |
पर्याप्तं त्विदम एतेषां बलं भीमाभिराक्षितम || 
हमारा भीष्म के द्वारा संरक्षित बल अपर्याप्त है , किन्तु उनका { पांडवों का } भीम के द्वारा संरक्षित बल पर्याप्त है |
कौरव वंश के वयोवृद्ध प्रतापवान पितामह ने वहां उपस्तिथ योद्धाओं के हर्ष की वृद्धि करते हुए शिंह के समान उच्च गर्जना करके शंख बजाया | 


तत: शंखाश्च भेर्यश्च पणवानकगोमुखा : |
सह सेवाश्यहन्यनत  स शब्द्स्तुमुलोअभवत || 
इसके पश्चात शंख , नगाड़े , ढोल , मृदंग और रणसिंघे आदि एक साथ ही बज उठे | वह ध्वनि बड़ी भयंकर थी |

पांचजन्य , देवदत्त , पोंड्र , सुघोष और मणिपुष्पक शंखों की तीव्र ध्वनि पांडवों के द्वारा की गई | उस भयंकर शब्द ने आकाश और पृथिवी को नाद से व्याप्त करते हुए धृतराष्ट्र पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया |

जब , श्री कृष्ण ने दोनों सेनाओं के मध्य रथ को स्थापित किया , तब वहां संबंधों और रिश्तों की भीड़ को वहां पाया , अत्यंत करुणा और शोक ग्रस्त होकर अर्जुन ने कहा -

सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति |
वेपथुश्च  शरीरे मे रोमहर्षश्च    जायते || 

हे कृष्ण !!   युध्य की इच्छा से खड़े इन स्वजनों को देखकर मेरे सारे अंग शिथिल हो रहे हैं , मुख भी सूखा जा रहा है , मेरा शरीर कांप रहा है , उसमें रोमांच हो रहा है |

" भीड़ का सामना अकेले करने से वही व्यक्ति घबराता है , जो खोया हुआ है स्वयं के विचारों की भीड़ मैं और जिसने अपने विचारों की भीड़ मैं से चुनकर किसी एक विशिष्ट विचार  { एकाग्रता को }  आगे लाने का अभ्यास किया है , वह पूरी दुनियां के सामने अकेला खड़ा रह सकता है | " 

क्रमश:- - - 
रेनू शर्मा ...

Sunday, May 10, 2009

स्वर्णाक्षर


१- वातावरण के जहर से जादा जहरीला होता है मन का जहर ।


२- हमारा दिमाग खेत की तरह है , वैचारिक खाद डालने पर ही बुद्धि की फसल लहलहाती है ।


३- जीतना एक आदत है , दुर्भाग्य से हारना भी एक आदत है ।


४- भविष्य में जीने वालों के साथ यादों के बसंत नही होते ।


५- पुराणी यादों को मुस्कराहटों के साथ यद् रखें , आंसुओं से नही ।


६- मूर्खों का साथ और अपने पैर पर कुल्हाडी मरना एक सामान ही है ।


७- जो लोग बहाने बना लेते हैं, वे लोग कुछ और नही बना पाते।


८- अंधे के हाथ बटेर भी तभी लगती है , जब वह कोशिश करता है ।


९- समय तेजी से उड़ता है पर आप उसे पकड़ सकते हैं ।


१०- हमारा दिमाग और पैराशूट खुलने पर ही काम करते हैं ।

रेनू ....

Tuesday, April 7, 2009

विभीषण


उस सात्विक बुद्धि का प्रतीक है जो शरीर में रहते हुए ही काल को जानने का प्रयास करती है ।

शैलेन्द्र शर्मा .,.

एतिहासिक प्रतीक




क , दशानन - रावन शरीर और दस इन्द्रियों का प्रतीक है जो स्वयम की रक्षा में सदैव तत्पर रहने से राक्षस कहा जाता है ।

Monday, April 6, 2009

पाप


जिसने जीवन में कभी पाप नही किया वह कभी पवित्रता को नही समझ सकता । इसका मतलब यह नही की पाप किया जाए ।

नीच लोगों के संपर्क में आए बिना , श्रेष्ठ व्यक्तियों को नही जन जा सकता । स्वयम श्रेष्ठ बनने के लिए निक्रिस्थ्ता के मैल को साफ़ करना ही पड़ता है ।


शैलेन्द्र शर्मा ..