पाप की परिभाषा मात्र इतनी है कि जिस कार्य को करने के पश्चात् , करने वाला पश्चाताप की अग्नि मै जलता रहे और वह पश्चाताप की अग्नि उसके सारे विकास को रोक दे , इसी को पाप कहा जा सकता है ।
शेलेन्द्र ....
गोबर्धन के ब्रजेन्द्र निवास परिसर में श्री गुरु जी के साथ सत्संग से जो , वचन प्रस्फुटित होते हैं , उनका संकलन '' फूल और कांटे '' के रूप में हुआ है
हमारा जीवन कांटे और फूलों से भरा रहता है , आध्यात्म की मरहम से हम जीवन को उच्चता दे सकते हैं .
रेनू ..
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