हिंसा की अभिव्यक्ति होने का आधार अकेले न रह पाना है । जो महान व्यक्ति सबके साथ रहते हुए भी मानसिक रूप से अकेले रहते हैं वे ही सच्चे अर्थों मई अहिंसक हो पाते हैं ।
जब तक व्यक्ति के मन मै एक से अधिक विचार होंगे , तब तक उसके मन मै वैचारिक हिंसा विद्यमान रहेगी ।
जिस समय व्यक्ति अपने समस्त विचारों को केंद्रित कर उन्हे एक करने मै सफल होता है , उस छण से ही वह वैचारिक रूप से भी " अहिंसक " हो पाता है ।
शेलेन्द्र ......
Wednesday, August 27, 2008
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