मैं जब इस दुनिया से जाऊं , तब शिष्यों से यह कह सकूं " " जो मेरे पास सबसे अच्छा था , मैंने वही दिया । जो भी मेरे पास आया मैंने अपना सारा खजाना उसे लुटा दिया , दिलों मई चुभे कांटे निकाल कर उन्हें फूलों से सजाता रहा , मैंने व्यापार भी किया तो एसा जिसमे दूसरों की बुराइयाँ लेकर अपनी सारी ममता न्योछावर कर दी । इस खुशी को मैं किसी से बाँट नही सका ""
शेलेन्द्र .......
Tuesday, August 26, 2008
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