जिस व्यक्ति का शारीरिक विकास अपूर्ण रह जाता है , उसे जीवन की संध्या में अनुभव होता है कि वे कुछ नही कर पाए । और वे व्यक्ति जिन्होंने शारीरिक ऊँचाइयों को छुआ , उन्हें कभी निराश नही होना पड़ा ।
शारीरिक विकास करते हुए वे समझ सके कि मूल रूप से वे मस्तिष्क की क्षमताओं का ही विकास कर रहे थे । तब वे पूर्ण रूप से मस्तिष्क को समझ जाते हैं ।
शरीर और मस्तिष्क के भीतर छुपी दिव्यता को समझ पाते हैं । जागरूकता इस बात की है कि हम कहीं रुक न जायें । निरंतर आगे बढ़ते ही रहें ।
शैलेन्द्र शर्मा ...
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